चौपाई
उमड़ घुमड़ जब सावन आया ।
यादों ने बहुतै तड़पाया ।।
अँखियाँ टपक टपक के बरसी ।
दरस तुम्हारी को ये तरसी ।।
झूले हमको लगे बुलाने ।
कोयल गीत लगी है गाने ।।
काहें तुमने हमे भुलाया ।
उमड़ घुमड़ जब सावन आया ।।
कामदेव भी डालें डोरे ।
फूल गिरे आँगन में मोरे ।।
पवन सुहानी खूब सताये ।
विरह वेग में अंग जलाये ।।
ऐसे में ये दिल घबराया ।
उमड़ घुमड़ जब सावन आया ।।
हमसे खींज रहीं हैं सखियाँ ।
चुप्पे चुप अब बीते रतियाँ ।।
आकर अब तो गले लगाओ ।
सावन में यूँ मत तरसाओ ।।
मिलने को ये मन ललचाया ।
उमड़ घुमड़ जब सावन आया ।।
कविराज तरुण
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