छंद बिना है ज्ञान अधूरा ।
छंद बिना कुछ भी नहि पूरा ।।
ज्यूँ गंगा का बहता पानी ।
छंद बने जनजन की बानी ।।
छंद अलौकिक छंद गेय है ।
हिंदी सेवा परम ध्येय है ।।
बाकी सब है चूरा चूरा ।
छंद बिना कुछ भी नहि पूरा ।।
कविता का उत्थान इसी में ।
ऋषि मुनियों का ध्यान इसी में ।।
देवलोक का वो अनुयायी ।
जिसने इसकी महिमा गायी ।।
छंद स्वर्ण ये नही धतूरा ।
छंद बिना कुछ भी नहि पूरा ।।
कविराज तरुण
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