वंदेमातरम्
रक्त नसों में बहता कहता वंदे माँ भारती
मन का दीप जलाकर करता तेरी मै आरती
तूही आचमन ..तू आगमन
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्
ध्यान तेरा ही मस्तक में है साँस चली तुझसे
दिन का सूर्य तुम्ही से निकला साँझ ढली तुझमे
तेरी मिट्टी बनकर सोना हमको पाल रही हैं
मेरी दिशायें सारी तेरा पल्लू थाम रही हैं
तूही मोहनम ..तू माधवम
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्
कौन भला तुझसे बढ़कर है कौन विकल्प है तेरा
जीवन तेरे नाम किया है ये संकल्प है मेरा
शीश चढ़ा दूँ कदमो में पर कर्ज नही उतरेगा
जी करता मै करता रहूँ माँ बस तेरी ही सेवा
तूही साधनम ..तू भावनम
तूही जीवनम ..तू प्राणसम
वंदे वंदे वंदे वंदे ..वंदे रे मातरम्
कविराज तरुण
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