मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है
क्या चमकेंगे हीरे मोती क्या चमकेगा कोई रतन
तू चंदा की नवल चाँदनी में लिपटा अंगारा है
खुद से प्यार किया था मैंने अबतक अपने जीवन में
तुमसे मिलकर भान पड़ा है तू जड़ है तू चेतन में
मुझमे तेरा अंश छुपा है दिल की धड़कन कहती है
अब मुझको खुद से भी ज्यादा तू इतना क्यों प्यारा है
मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है
अबतक थी जो घोर उदासी उसका अंत निकट आया
तेरे बिन वैरागी मै तू , मेरे मन की माया है
धूप घनी थी जीवन में , राह कठिन थी पास मेरे
मन को मेरे चैन मिला तू , शीतल ठंडी छाया है
रंगों में खिलता ये यौवन , फूलों से भी नाजुक तुम
आसमान की वृहद दिशा में , तू स्वर्णिम सा तारा है
मै अल्हड़ सा सावन हूँ और तू गंगा की धारा है
यूँ लगता है पाकर तुमको तू ही तो जग सारा है
कविराज तरुण
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