Monday, 3 December 2018

दूसरा नही होता

इश्क़ ये दूसरा नही होता
दूर वो है जुदा नही होता
            जाने क्या कुछ रही खता मेरी
            यार अब वो ख़फ़ा नही होता
शाम मिलती है बनके गैरों सी
और अब कुछ बुरा नही होता
            रोज चादर में छुपके रोता हूँ
            दर्द लेकिन फ़ना नही होता
एक मुद्दत लगी मनाने में
प्यार का ये सिला नही होता
            रूठना फिर से तो नही आना
            सोचता हूँ मना नही होता
क्यों तरुण यूँ उदास रहता हूँ
शख्स आखिर खुदा नही होता

कविराज तरुण

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