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प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा
कर सके ही कहाँ हाल-ए-दिल का बयां , दोस्तों वो नही अब मेरे हमनवां
राज थे यूँ कई उल्फ़तों मे दबे , मै उठा और दिल डोलता ही रहा
*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*
कोशिशें दुश्मनों ने करी थी बहुत , हार का स्वाद वो पर चखा ना सके
उसने ऐसा रचा खेल ये प्रेम का , जीत थी द्वार पर छोड़ता ही रहा
जब भी कोई ख़ुशी पूँछती थी पता , बस यही गम रहा बस यही थी खता
भेजता मै रहा जिस गली तू चली , और तू प्यार को तोलता ही रहा
*प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने .. ला लला ला लला*
है यही भेद बस चाहतों में सनम , है यही खेद बस राहतों में सनम
तुम घटाती रही मेरी हर याद को , मै तुम्हारा असर जोड़ता ही रहा
प्यार की बात मै रोज ही रात में , चाँद के सामने बोलता ही रहा
जो मुझे छोड़कर चैन से सो रहा , मै उसे स्वप्न में खोजता ही रहा
कविराज तरुण
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