फोन पर पहली दफा जब सर्दियों में , आपने दिल खोलकर के बात की थी
सो गया था चाँद भी उस चाँदनी में , और हमने जागकर ये रात की थी
चुस्कियाँ थी चाय की मेरी तरफ से , और कॉफी हाथ में तेरे सजी थी
जानती क्या ठंड में सहमी रजाई , गर्म प्याली से बड़ी जलने लगी थी
मेघ कोसों दूर मौसम था सुहाना , बारिशों का था नही कोई ठिकाना
एक तुम भीगे वहाँ पर और इक हम , बादलों ने इसतरह बरसात की थी
मै अँधेरे में दिया चाहत का लेकर , आपका श्रृंगार मन में गढ़ रहा था
जो लिखा था आपकी आवाज ने तब , मूक रहकर ही उसे मै पढ़ रहा था
सुन रहा था आसमाँ लेकर सितारे , जुगनुओं की भीड़ दोनों को पुकारे
पर हमें क्या ध्यान ऐसे खो गये थे , खूबसूरत प्यार की शुरुआत की थी
कविराज तरुण
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