पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है
रुनझुन रुनझुन ध्वनि कानों में जब भी आती है
याद तुम्हे क्या है वो दिन जब चाँदी की पायल दी थी
घंटों उसकी सुंदरता की तुमने तब बातें की थी
कभी नचाती हाथ में अपने कभी बाँधती मुठ्ठी में
सारेगामा का स्वर बजता तेरी हर एक चुटकी में
मेरे हाथ से प्रियतम तुमने पहनी थी पायल कैसे
यही सोचता रहता हूँ भीतर घर में बैठे बैठे
आज भी पायल लाया हूँ ये तुम्हे बुलाती है
पायल की झंकार तुम्हारी याद दिलाती है
कविराज तरुण
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