Friday 10 January 2014

बचपन की यादें

बचपन की यादें

वो सालो साल पहले जब मै पैदा हुआ था
कुछ लोग कहते गेंहू कुछ कहते मैदा हुआ था
पर मुझे क्या पता , थी मुझे क्या खबर
कि मै ऐसा हुआ था कि कैसा हुआ था ।
कुछ वर्ष बीते मुझे याद आ रहा है
वो बचपन के लड्डू का स्वाद भा रहा है
वो माँ का आँचल , वो आँखों का पानी
सुर्ख होंटो से वो मेरे गालों पर निशानी
पापा का मेरे दफ्तर से आना
वो लोरी गाना वो सिर सहलाना
कंधो पर अपने मुझको घुमाना
उँगली पकड़कर चलना सिखाना
वो लम्हे आज क्यों यूं याद आ रहे
वो किस्से आज क्यों यूं हमें सता रहे ।
पहली बार जब टीचर ने माँ से हाथ छुड़ाया था
कोई तो बताये मै कितना चिल्लाया था
क्लास में पहला दिन मै मायूस हो रहा था
टीचर से छुपकर मै कितना रो रहा था
इंतज़ार में था ये आँखें माँ से कब मिलेगी
मुरझाये फूलों की ये बगिया फिरसे कब खिलेगी
फिर छुट्टी हुई मै घर को गया
माँ से लिपटा , रूठा और ना जाने कब सो गया ।
फिर धीरे धीरे वक़्त बीते माह और साल बीते
समय खिसकता गया मैंने कई पुरस्कार जीते
था एहसास मुझे मै बड़ा हो रहा हूँ
और अब माँ के तकिये से दूर सो रहा हूँ
पर फिर भी एक कोने में मेरा बचपन दबा हुआ है
जवानी की दस्तक ने आज इसको ठगा हुआ है
कोई आकर कर जाए मुझसे ये वादे
कोई तो मजबूत करे मेरे इरादे
माँ के हाथो से मिल जाए चावल वो सादे
कोई आज लौटा दे मुझे बचपन की यादें ।

--- कविराज तरुण

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