Sunday, 5 January 2014

यादों की तिजोरी

यादों की तिजोरी

यादों की तिजोरी को खोला तो पाया
तेरे लिखे हुए ख़त वैसे ही धरे हैं
जिसपर मेरे आंसुओं के मोती साबुत बचे हैं
तेरा दिया कोई फूल मुरझाया नहीं है
हाँ ये सच है एक अरसे से ये मुस्कुराया नहीं है
तेरी शोखी तेरा अंदाज़ बंद इस तिजोरी मे
संग जीने मरने का भी ख्वाब बंद इस तिजोरी मे
तेरे कदमों की आहट इसके दरवाज़े को पता है
इसके आईने मे तेरा चेहरा अब भी सजा है
तेरी हँसी से रंगा है मैंने इसकी दीवारों को
अपनी उदासी से भरा है इसकी दरारों को
तेरी महक आज भी सलामत है इसमे
तेरी कसमे तेरे वादे अमानत हैं इसमे
आरज़ू हसरतो की इसमे एक चाभी लगाईं है
इस ज़माने से कहीं दूर ये तिजोरी छुपाई है
यादों की तिजोरी को खोला तो पाया ...

--- कविराज तरुण

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