Friday, 10 January 2014

आज के संत

आज के संत

मै यही सोचता रह रह कर
ये कैसे आज के संत
वेद कोई पढ़ा नही
व्यर्थ बोलते मन्त्र
ये कैसे आज के संत ।
एक बात कुछ रोज की है
जब मेला लगा विशाल
सामने प्रचल वाहिनी गंगा
पीछे लगी कतार
कोई बूढ़ा था कोई
बच्चा और जवान
कुछ अधमरे पड़े हुए थे
कुछ की बाकी नही थी जान
मै भी था कुंभ की इस अथाह भीड़ मे
वीडियोग्राफी के संग
कुछ साधू बैठे बजा रहे थे
अनगिनतो सुंदर शंख
पर उनका ध्यान हटा उन्होंने
जब देखा मेरा यंत्र
चकित भाव से पास आ गए
छोड़ के सारे तंत्र
बोले ये बच्चा क्या है
जीव या अवतार
मैंने फिर ये बोला बाबा
ये है विज्ञान का चमत्कार
फिर बाबा लोगो ने खिचातानी मे
उसमे आँख लगाई
देख कर वे सब दंग हो गए
गंगा निकट थी आई
जब देखी बंद कैमरे मे ये
अखिल सृष्टि सुकड़ाई
और लाखो ने एक पल मे ही
डुबकी खूब लगाई
तो प्रभु की महिमा ख़त्म हुई
विज्ञान ने फूंका मन्त्र
कुछ साधू संतों ने किया तुरत ही
धर्म का सुन्दर अंत
मै यही सोचता रह रह कर
ये कैसे आज के संत
वेद कोई पढ़ा नही
व्यर्थ बोलते मन्त्र
ये कैसे आज के संत ।।

--- कविराज तरुण

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