Wednesday, 16 August 2017

ग़ज़ल 23- दुआयें साथ चलती हैं

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बुलंदी पर बड़ी तीख़ी हवायें साथ चलती हैं ।
भटकने वो नही देती दुआयें साथ चलती हैं ।।

यूँ' ज़िल्लत की इजाज़त माँगती कब जिंदगी हमसे ।
कभी लंगड़ी कभी ठोकर सदायें साथ चलती हैं ।।

मै' गिरता हूँ सँभलता हूँ फ़क़त मै आदमी तो हूँ ।
जुबानी जंग में अक्सर फिजायें साथ चलती हैं ।।

मिरे असरार फीके हैं मगर ये हैं गलीमत है ।
बिना बोले कहाँ दिल की अदायें साथ चलती हैं ।।

'तरुण' रुकना मना है आज इस असफार में बेशक ।
जो' हिम्मत की क़वायद हो दिशायें साथ चलती हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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