1222 1222 1222 1222
बुलंदी पर बड़ी तीख़ी हवायें साथ चलती हैं ।
भटकने वो नही देती दुआयें साथ चलती हैं ।।
यूँ' ज़िल्लत की इजाज़त माँगती कब जिंदगी हमसे ।
कभी लंगड़ी कभी ठोकर सदायें साथ चलती हैं ।।
मै' गिरता हूँ सँभलता हूँ फ़क़त मै आदमी तो हूँ ।
जुबानी जंग में अक्सर फिजायें साथ चलती हैं ।।
मिरे असरार फीके हैं मगर ये हैं गलीमत है ।
बिना बोले कहाँ दिल की अदायें साथ चलती हैं ।।
'तरुण' रुकना मना है आज इस असफार में बेशक ।
जो' हिम्मत की क़वायद हो दिशायें साथ चलती हैं ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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