Monday, 28 August 2017

ग़ज़ल 27- मजा आ गया

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मजा आ गया

जो न मैंने कहा , सुन लिया आपने ,दिल ने घंटी बजाई , मजा आ गया ।
साँस थमने लगी , आँख झुकने लगी , इक लहर दौड़ आई , मजा आ गया ।।

बरकते हुस्न की , शबनमी चाँदनी, क्या कहूँ खूब हो , दिलकशीं लाजिमी ।
बेसबर सा हुआ , बेखबर सा हुआ , बेअसर सब बुराई , मजा आ गया ।।

मै भटकता रहा , रोज बाज़ार में , प्यार बिकता दिखा , आज संसार मे ।
इक तुही पाक है , तेरा' अंदाज है, तुमसे' नजरें मिलाई , मज़ा आ गया ।।

बात बढ़ने लगी , साथ चलने लगी , ये जमीं वादियां , यार मिलने लगी ।
मेहमां अब नही , दिल के मालिक हुये , ये वसीयत लिखाई , मज़ा आ गया ।।

मौशिकी के लिये , आशिक़ी की लिये , तुम बने साहिबा , जिंदगी के लिये ।
है 'तरुण' आज खुश , रहनुमा तुम मिरे , धुन जो' ये गुनगुनाई , मज़ा आ गया ।।

कविराज तरुण सक्षम

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