Tuesday, 22 August 2017

ग़ज़ल 24- मिल गया होता

1222 X 4

आरा
मिल गया होता

जो' मुझको प्यार का कोई इशारा मिल गया होता ।
नदी भी मिल गई होती किनारा मिल गया होता ।।

बड़ी बेचैन सी ये जिंदगी है आज राहों मे ।
कमी तेरी जो भर पाती गुजारा मिल गया होता ।।

मुझे बदनाम करने की वक़ालत कर रहे वो ही ।
जिसे शीशे मे' खुद अपना नज़ारा मिल गया होता ।।

हसीं हैं चाँद तारे ये हसीं है रात ख़्वाबो की ।
जो' आते पास लम्हा भी गवारा मिल गया होता ।।

करी हैं कोशिशें खुद से , यकीं तुमको नही होगा ।
'तरुण' को गर समझ लेते , दुबारा मिल गया होता ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment