विषय - दुःख क्यों है : नारी प्रधान रचना
नारी ने नारी को जन्मा फिर उसको दुःख क्यों है ?
भूल गई क्या अपना बचपन फिर उसको दुःख क्यों है ?
सोचा करती थी वो अक्सर , मै सब सहती ही जाऊँगी ।
पर जब आएगी बेटी घर में , मै खुशियाँ खूब मनाऊंगी ।
खेल खिलौने खील बताशे , केवल लड़को के ही हिस्से क्यों ?
मै अपनी बिटिया को लड्डू , छप्पन भोग खिलाऊँगी ।
पढ़ा लिखा कर अफसर बेटी , जब द्वार खोल कर आयेगी ।
मेरे टूटे सपनो की गगरी , खुशियों से भर जायेगी ।
तब मै देखूँगी उसमे ही , अपने अतीत का स्वप्न प्रबल ।
सच्चे अर्थों में ये माँ उसदिन , अंदर से मुस्कायेगी ।
पर जब नन्ही कली जीवन में , खुशियां लेकर आई है
वो माँ दुःख से भरी हुई है , न जाने क्यों घबराई है
बचपन के सपने भूल के सारे , भूल के अपने किस्से
बेटी बेटी कहती थी पर , बेटे को अब ललचाई है
बेटी है अंचल में सुन्दर फिर भी उसको दुःख क्यों है ?
नारी ने नारी को जन्मा फिर भी उसको दुःख क्यों है ?
कविराज तरुण 'सक्षम'
No comments:
Post a Comment