राष्ट्रभाषा ग़ज़ल
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मुझे हिंदी ही' प्यारी है , बहुत भाषा विचारी है ।
मगर अफ़सोस है इतना , वो' अपनों से ही' हारी है ।।
बड़ी मासूम है हिंदी , सभी के साथ चलती है ।
मिले ताने हमेशा क्यों , रहे बनकर बिचारी है ।।
हमारी शान है हिंदी , हमारी जान है हिंदी ।
ये' चारो धाम हैं इसके , यही कन्याकुमारी है ।।
लगे की माँ बुलाती है , कि जब आवाज़ आती है ।
उदर के साथ ही निकली , जुबां इतनी ये' प्यारी है ।।
चलो छोड़ो भरम अपने , कभी ये गुनगुनाओ तो ।
तरुण हिंदी शरम कैसी , सभी पर ये ही' भारी है ।।
कविराज तरुण सक्षम
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