Wednesday, 30 August 2017

ग़ज़ल 29- ऐ मिरे हमसफ़र

ग़ज़ल - ऐ मिरे हमसफ़र
बहर - 212x8

आँख की मस्तियाँ , बात की चासनी , ये न कहना तुझे , है मुहब्बत नही ।
हो फरेबी अगर , साफ़ ये बोल दो , दिल लगाने की' तुझको , जरूरत नही ।।

यूँ तिरे हुस्न की , हर तरफ है ख़बर , हाँ मुझे भी ज़रा , हो गया है असर ।
शरबती आँख का , हूँ मुरीदी सनम , और कोई तमन्ना , इबादत नही ।।

हर खिले फूल का , कोई' माली भी' है , है जवाबी अगर , तो सवाली भी है ।
तुम भी' समझो मुझे, राज़ सब खोल दो , चुप रहो जो हमेशा , शराफ़त नही ।।

सर झुकाउंगा मै , हाँ मनाऊंगा मै , दिल तिरा नेक हो , तो रिझाऊंगा मै ।
तुम बनो गीत सी , हाँ दिखो मीत सी , फिर युं जाने की' तुमको , इजाज़त नही ।।

तुम भरोसा करो , मै भरोसा करूँ , दो कदम तुम चलो , दो कदम मै चलूँ ।
कह रहा ये तरुण , ऐ मिरे हमसफ़र , भूलकर भी करूंगा , बग़ावत नही ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'
व्हाट्सएप- 9451348935

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