Tuesday, 5 December 2017

ग़ज़ल 64 तीन तलाक और हलाला

विषय - तीन तलाक और हलाला

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उगा जो फूल गुलशन में शरारा हो गया होता ।
अगर जागे नही होते हलाला हो गया होता ।।

करो घुसपैठ रिश्ते में शरम तुमको नही काजी ।
बनाते रश्म ना ऐसी बहारा हो गया होता ।।

पता है तीन लफ्ज़ो मे हया के तार हिलते हैं ।
सियासी खेल से कबका किनारा हो गया होता ।।

कुहासे में घने तुम हो तुम्हारी सोच बेगैरत ।
नही करते जो' ये हरकत उजाला हो गया होता ।।

तरुण बोले कहा ये मान लो बीवी करो इज्जत ।
खुदा का फिर तुम्हे बेशक सहारा हो गया होता ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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