1222 1222 1222 1222
गली मेरी पकड़के जब लिये डोली सनम निकले ।
किसी मय्यत के' जैसे ही मिरे सारे वहम निकले ।।
किधर से ख़्वाब आये थे किधर जाने चले हमदम ।
नमी आँखों मे' लेकर के बड़े मायूस हम निकले ।।
सदाकत औ नज़ाक़त में नही उनका कोई सानी ।
न जाने किस खुमारी में वो' इतने बेरहम निकले ।।
बिना वजहें उन्हें मै दोष देता ही चला आया ।
खुली जब आँख दिन में तो मिरे सारे करम निकले ।।
सुराही प्यार की फूटी चुराने जब लगे नजरें ।
तरुण बेबस ठिकानों पे सिसकते से ही' गम निकले ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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