Tuesday 5 December 2017

ग़ज़ल 65 सनम निकले

1222 1222 1222 1222

गली मेरी पकड़के जब लिये डोली सनम निकले ।
किसी मय्यत के' जैसे ही मिरे सारे वहम निकले ।।

किधर से ख़्वाब आये थे किधर जाने चले हमदम ।
नमी आँखों मे' लेकर के बड़े मायूस हम निकले ।।

सदाकत औ नज़ाक़त में नही उनका कोई सानी ।
न जाने किस खुमारी में वो' इतने बेरहम निकले ।।

बिना वजहें उन्हें मै दोष देता ही चला आया ।
खुली जब आँख दिन में तो मिरे सारे करम निकले ।।

सुराही प्यार की फूटी चुराने जब लगे नजरें ।
तरुण बेबस ठिकानों पे सिसकते से ही' गम निकले ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment