Thursday, 21 December 2017

ग़ज़ल 68 कहाँ कहाँ

1212 1212 1212 1212

कहाँ कहाँ चलूँ ज़रा कहाँ कहाँ रुका करूँ ।
कहाँ कहाँ तनूं भला कहाँ कहाँ दबा करूँ ।।

ये' जिंदगी ही' जानती कि ठौर है कहाँ कहाँ ।
किवाड़ पर खड़ा खड़ा डरा डरा लुका करूँ ।।

गली-गली जली-जली कली-कली लुटी हुई ।
मै' मूक ही दिवार की दरार मे पिसा करूँ ।।

शनै शनै कदम बढ़े शनै शनै प्रयास हो ।
मै' तलहटी मे' डूबकर उभार ले उठा करूँ ।।

नमी मिली कमी मिली निगाह भी थमी मिली ।
गये तरुण वो' इसतरह कहो कहाँ वफा करूँ ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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