Saturday, 16 December 2017

ग़ज़ल 67 लुट गयी

212 212 212 212

चाँद खामोश था चाँदनी लुट गयी ।
साथ तेरा छुटा जिंदगी लुट गयी ।।

कह न पाये कभी दिल मिरा कह रहा ।
इन लबों की कसम रागिनी लुट गयी ।।

हाल फिलहाल मे हाल मिलता नही ।
वो ख़फ़ा यूँ हुये आशिक़ी लुट गयी ।।

सीरतें जब दिखी बात ही बात मे ।
नूर झड़ सा गया सादगी लुट गयी।।

चल तरुण छोड़ दे जो वहम पल रहा ।
चश्म-ए-दिल खुल गया रोशिनी लुट गयी ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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