212 212 212 212
चाँद खामोश था चाँदनी लुट गयी ।
साथ तेरा छुटा जिंदगी लुट गयी ।।
कह न पाये कभी दिल मिरा कह रहा ।
इन लबों की कसम रागिनी लुट गयी ।।
हाल फिलहाल मे हाल मिलता नही ।
वो ख़फ़ा यूँ हुये आशिक़ी लुट गयी ।।
सीरतें जब दिखी बात ही बात मे ।
नूर झड़ सा गया सादगी लुट गयी।।
चल तरुण छोड़ दे जो वहम पल रहा ।
चश्म-ए-दिल खुल गया रोशिनी लुट गयी ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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