Monday, 4 December 2017

ग़ज़ल 61 प्यार है

ग़ज़ल - प्यार है
2122 2122 2122 212

क़िस्त में मिलता रहा जो उस हसीं का प्यार है ।
देखिये कबतक जुड़ेगा हाल-ए-दिल का तार है ।।

मै मुहब्बत थोक मे उसपर लुटाता फिर रहा ।
खार मे जब पाँव है तो सामने गुलजार है ।।

बेअदब है बेमुरव्वत बेहया पर है नही ।
उस सनम का जानिये कुछ तो अलग किरदार है ।।

चौक पर घंटो बिताये चाँदनी गिरने लगी ।
नूर जब वो दिख गया लगने लगा उपहार है ।।

हो 'तरुण' कुछ इसतरह उसकी इनायत रात मे ।
ख़्वाब आँखों पर सजे यों मानिये श्रृंगार है ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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