Tuesday, 6 February 2018

ग़ज़ल 84 गये हैं

221 2122 221 2122

कुछ इसतरह वो आकर दिल में उतर गये हैं ।
हालात प्यार वाले लगता सुधर गये हैं ।।

फिर रात की सियाही खुद गुमशुदा हुई है ।
गम के गुबार देखो जाने किधर गये हैं ।।

मै जी गया हूँ फिर से हँसने लगी फिजायें ।
दरबार-ए-जिंदगी में जबसे ठहर गये हैं ।।

तुम तिशनगी से कहना अब प्यास भी नही है ।
लहरों की मौज में हम भीतर गुजर गये हैं ।।

आगाज़ खुशनुमा है अंदाज़ भी तरुण है ।
इस जिस्म जान में वो आके सँवर गये हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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