Thursday, 22 February 2018

ग़ज़ल 89 आप आये तो आशिक़ी आई

ग़ज़ल 89- चली आई

2122 1212 22

आप आये तो आशिक़ी आई ।
चाँद से मिलने चाँदनी आई ।।

फूल खिलने लगे दिलों के भी ।
साथ बारिश भी दिलनशी आई ।।

राह से मुश्किलें फ़ना करके ।
मंजिलें खुद-ब-खुद चली आई ।।

खामखाँ जी रहे अँधेरे में ।
तुम जो आये तो रोशिनी आई ।।

तार उलझे हमारी नजरो के ।
तो जवां दिल में सरसरी आई ।।

उम्र कुछ इसतरह बढ़ी मेरी ।
मुद्दतों बाद जिंदगी आई ।।

हाँ *तरुण* इश्क़ ये मुबारक हो ।
छोड़ के आसमाँ परी आई ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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