ग़ज़ल 89- चली आई
2122 1212 22
आप आये तो आशिक़ी आई ।
चाँद से मिलने चाँदनी आई ।।
फूल खिलने लगे दिलों के भी ।
साथ बारिश भी दिलनशी आई ।।
राह से मुश्किलें फ़ना करके ।
मंजिलें खुद-ब-खुद चली आई ।।
खामखाँ जी रहे अँधेरे में ।
तुम जो आये तो रोशिनी आई ।।
तार उलझे हमारी नजरो के ।
तो जवां दिल में सरसरी आई ।।
उम्र कुछ इसतरह बढ़ी मेरी ।
मुद्दतों बाद जिंदगी आई ।।
हाँ *तरुण* इश्क़ ये मुबारक हो ।
छोड़ के आसमाँ परी आई ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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