प्रसिद्द हास्य कविता ' मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये प्यार नही है खेल प्रिये ' की तर्ज पर लिखी मेरी ये हास्य रचना-
मिलन का अवसर कैसे होगा
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मै पतझड़ का सूखा पत्ता
सावन का तुम पुष्प गुलाबी ।
सिगरेट की मै धुंध कालिमा
आँखों का मेरे हाल शराबी ।।
चंचल चितवन यौवन तेरा
तुझमे कोई नही खराबी ।
किस्मत से मै बेघर बेचारा
तुम खुलजा सिमसिम वाली चाबी ।।
*अब मिलन का अवसर कैसे होगा*
*नही बनेंगे अब ठाट नवाबी ।।*
तुम विटामिन बी की गोली
मै बीज करेले वाला हूँ ।
तुम शोरूम ऑडी वाला हो
मै पानठेला मतवाला हूँ ।।
मै कुरूप घनघोर धूप
काजल से भी गहरा काला हूँ ।
तुम मदनमोहिनी नवल कामिनी
मै मकड़ी का जाला हूँ ।।
*अब मिलन का अवसर कैसे होगा*
*मै काटों की वरमाला हूँ ।।*
मै बूढ़ा सा सांड सरफिरा
तेरी हिरनी जैसी काया है ।
मै देशी ठर्रा पन्नी वाला
तू काजू कतली की माया है ।।
मै गर्मी से बेहाल पसीना
तू साँझ सुहानी छाया है ।
श्रृंगार बिना ही तू जँचती
मेरी हर कोशिश ही जाया है ।।
*अब मिलन का अवसर कैसे होगा*
*क्या अम्बर धरती पर आया है ।।*
मै ट्रेन की सीटी जैसा कर्कश
अरिजीत का गाना तुम हो ।
पहचान कुपोषण वाली मेरी
काजू किसमिस का दाना तुम हो ।।
मै पेट बाँध के सोने वाला
और होटल का खाना तुम हो ।
कभी कभी मै हँसने वाला
जो हँस दे वो रोजाना तुम हो ।।
*अब मिलन का अवसर कैसे होगा*
*मै मुजरिम और थाना तुम हो ।।*
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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