ग़ज़ल 88 - करो न करो
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ऐ सनम प्यार तुम करो न करो ।
मुझपे एतबार तुम करो न करो ।।
सच तो इकदिन नज़र ही आयेगा ।
झूठे अशआर तुम करो न करो।।
धागा टूटे तो जुड़ नही पाये ।
गाँठ हरबार तुम करो न करो ।।
इश्क़ में रूह मोल रखती है ।
चाहे श्रृंगार तुम करो न करो ।।
ये मुहब्बत है आइना दिल का ।
मुझको बेज़ार तुम करो न करो ।।
जो *तरुण* होगा दिख भी जायेगा ।
वादे दो चार तुम करो न करो ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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