Thursday, 22 February 2018

ग़ज़ल 88 - करो न करो

ग़ज़ल 88 - करो न करो

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ऐ सनम प्यार तुम करो न करो ।
मुझपे एतबार तुम करो न करो ।।

सच तो इकदिन नज़र ही आयेगा ।
झूठे अशआर तुम करो न करो।।

धागा टूटे तो जुड़ नही पाये ।
गाँठ हरबार तुम करो न करो ।।

इश्क़ में रूह मोल रखती है ।
चाहे श्रृंगार तुम करो न करो ।।

ये मुहब्बत है आइना दिल का ।
मुझको बेज़ार तुम करो न करो ।।

जो *तरुण* होगा दिख भी जायेगा ।
वादे दो चार तुम करो न करो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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