विषय - कर्म और भाग्य
कर्म कांड को जो नहि माने , जीवन उसका है धिक्कार ।
आलस निद्रा मोह बेकारी , सपनो का करता परिहार ।।
जिजीविषा जो मन में नाही , जीना उसका घोर उधार ।
भाग्य वही हाथन में सोहे , श्रम का जो करता श्रृंगार ।।
अभ्यासों का मोल अनोखा , कर लो भाई तनिक विचार ।
कर कर के ही सफल सितारा , आसमान करता है पार ।।
छोड़ो थकन भरी बीमारी , कर्म करो उज्ज्वल साकार ।
जीत तुम्हारी सहभागी है , साथी सारा ये संसार ।।
बढ़े चलो तुम लक्ष्य बनाकर , पथ को अपने दो विस्तार ।
यही सत्य जीवन का वीरे , कर्म बिना सब है बेकार ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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