221 2122 221 2122
वो बनके मेरी रानी मुमताज हो न जाये ।
ढपली बना कहीं वो फिर साज हो न जाये ।।
बेमेल की मुहब्बत माना तेरी हमारी ।
जो मै करूँ शिकायत नाराज हो न जाये ।।
परिवार ने बिछाया सिर पर मेरे बिछौना ।
मै दब रहा हूँ इसमें अब खाज हो न जाये ।।
किस्मत में ये लिखा था आयेगा वक़्त खोटा ।
बस डर यही है साहब ये आज हो न जाये ।।
मुँह बाँध कर ही आना घर में तरुण हमारे ।
ऐसा न हो तमाचे आगाज हो न जाये ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
No comments:
Post a Comment