ग़ज़ल - बुलाया है मुझे
2122 2122 212
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फिर वफ़ा का नूर छाया है मुझे ।
चौक पर उसने बुलाया है मुझे ।।
चौक पर उसने बुलाया है मुझे ।।
हर घड़ी करता फिरा था इंतज़ा ।
उस खुदा का गौर आया है मुझे ।।
उस खुदा का गौर आया है मुझे ।।
ताल सुर से ही गया था मै बिदक ।
राग फिर तूने सिखाया है मुझे ।।
राग फिर तूने सिखाया है मुझे ।।
चल रहा था भीड़ में तनहा मगर ।
साथ में अपने उड़ाया है मुझे ।।
साथ में अपने उड़ाया है मुझे ।।
रोशिनी आने लगी है ज़र्द से ।
बादलों ने खुद बताया है मुझे ।।
बादलों ने खुद बताया है मुझे ।।
हर्फ़ ये निकले हैं' जिसकी अर्ज़ पर ।
उस हसीं ने खुद सिखाया है मुझे ।।
उस हसीं ने खुद सिखाया है मुझे ।।
वक़्त तेरा फैसला अब मै करूँ ।
कितने' दिन तूने नचाया है मुझे ।।
कितने' दिन तूने नचाया है मुझे ।।
धुंध थी जो छट गई वो प्यार मे ।
इस तरह से आजमाया है मुझे ।।
इस तरह से आजमाया है मुझे ।।
था गमो की ढ़ेर पर बैठा तरुण ।
उस फलक पर अब बिठाया है मुझे ।।
उस फलक पर अब बिठाया है मुझे ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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