बहर -212 212 212 212
हाँ मिरी जिंदगी को बसर चाहिये।
आप जैसा को'ई हमसफ़र चाहिये ।।
ताश के ढ़ेर ये कह रहे आजकल ।
जोड़ दो अब मुझे एक घर चाहिये ।।
ख़्वाब आने लगे जो हुई आशिक़ी ।
नींद आँखों में' अब तो ख़बर चाहिये ।।
दिल नही जो मिरा धड़कनों की सुने ।
तू इसे रात दिन उम्र भर चाहिये ।।
है तरुण आज शायर तिरे हुस्न का ।
प्यार की राह में अब गुजर चाहिये ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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