ग़ज़ल - कहानी ढह गई
2122 2122 212
दरमियां बातें जुबां जो सह गई ।
बन खलिश वो आंसुओं सी बह गई ।।
जब उकेरा आसमां पर ये निशां ।
शक्ल तेरी इस जमीं पर रह गई ।।
आरजू जीने समझने का हुनर ।
उम्र ये गुजरी कहानी ढह गई ।।
हम मिले कुछ पल जमाना जल गया ।
और फिर नींदे हवा में लह गई ।।
सिलसिला ये चल पड़ा था जब तरुण ।
होंठ तेरी बद-जुबानी कह गई ।।
कविराज तरुण सक्षम
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