1212 1122 1212 22
बला का हुस्न दिले खाकसार सा निकला ।
वजूद उसका यकीनन गुबार सा निकला ।।
जिसे गरूर बड़ा मै मिलूँगा चौखट पर ।
मेरी गली वो सनम बेकरार सा निकला ।।
यकीं नही है मुझे पर यही हक़ीक़त है ।
चुना करोड़ो जिसे वो हज़ार सा निकला ।।
चिराग-ए-इश्क़ तेरी लौ जले बता कैसे ।
हवा उड़ाते हुये वो बयार सा निकला ।।
ये गम नही कि जिगर हो गया मेरा छलनी ।
यही मलाल तरुण वो कटार सा निकला ।।
कविराज तरुण
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