Tuesday, 15 May 2018

ग़ज़ल 96- वो निकला

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बला का हुस्न दिले खाकसार सा निकला ।
वजूद उसका यकीनन गुबार सा निकला ।।

जिसे गरूर बड़ा मै मिलूँगा चौखट पर ।
मेरी गली वो सनम बेकरार सा निकला ।।

यकीं नही है मुझे पर यही हक़ीक़त है ।
चुना करोड़ो जिसे वो हज़ार सा निकला ।।

चिराग-ए-इश्क़ तेरी लौ जले बता कैसे ।
हवा उड़ाते हुये वो बयार सा निकला ।।

ये गम नही कि जिगर हो गया मेरा छलनी ।
यही मलाल तरुण वो कटार सा निकला ।।

कविराज तरुण

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