२१२ २१२ २१२ २१२
ढ़ोल की गूंज से घर सजा साजना ,
प्रीत के रंग में सब रँगा साजना ।
पास में ये सखी आज कहने लगी ,
चाँद सा खूब ही जँच रहा साजना ।
नैन को चैन अब हो सके तो मिले ,
स्वप्न की ही तरह आ गया साजना ।
पुष्प सा मन हुआ आगमन जब हुआ ,
गीत की धुन चली नाचता साजना ।
रश्म के रूप में जुड़ रहे दिल यहाँ ,
जल गया अब मिलन का दिया साजना ।
कविराज तरुण
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