Tuesday, 15 May 2018

गीतिका - बावरे

गीतिका
आधार छंद -वाचिक स्रग्विणी

२१२ २१२ २१२ २१२

श्वान के भाल होते नही बावरे ,
सिंह के सामने सब सही बावरे ।

वीरता स्वयं ही राह अपनी चुने ,
वेद भी कह गये हैं यही बावरे ।

शक्ति है कल्पना कर्म की साधना ,
दूध के ही बिना क्या दही बावरे ।

सूक्ष्म को दिव्य कर दीर्घ कर दृश्य कर ,
चींटियां आज फिर कह रही बावरे ।

कविराज तरुण

No comments:

Post a Comment