गीतिका
आधार छंद -वाचिक स्रग्विणी
२१२ २१२ २१२ २१२
श्वान के भाल होते नही बावरे ,
सिंह के सामने सब सही बावरे ।
वीरता स्वयं ही राह अपनी चुने ,
वेद भी कह गये हैं यही बावरे ।
शक्ति है कल्पना कर्म की साधना ,
दूध के ही बिना क्या दही बावरे ।
सूक्ष्म को दिव्य कर दीर्घ कर दृश्य कर ,
चींटियां आज फिर कह रही बावरे ।
कविराज तरुण
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