गीतिका
आधार छंद -वाचिक स्रग्विणी
२१२ २१२ २१२ २१२
वेदना से हृदय आज रोने लगा ,
कंठ व्याकुल गला शुष्क होने लगा ।
भाव भीतर भये कष्ट की कालिमा ,
पाँव पाथर पथिक पंथ खोने लगा ।
पुष्प की डालियां शूल की बालियां ,
बाग़ मुरझा गया घास बोने लगा ।
है सजल नेत्र ये मर्म का क्षेत्र ये ,
पंखुड़ी सी पलक नित भिगोने लगा ।
डूब कर प्रेम में चंचला मन चला ,
रूप का फूल ये तन पिरोने लगा ।
हिय हमारा हरा ही हरा हेरता ,
अंध सावन हरे में डुबोने लगा ।
कविराज तरुण
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