तपन
आस लिए सावन की , पीड़ा में तन मन की ,
आग सुलगने लगी , मृदुवात पीजिये ।।
प्रीत इन नैनन की , जा रही चिलबन की ,
रात सिमटने लगी , सुप्रभात लीजिये।।
लय मन भावन की , बिखरी है जीवन की ,
राग सिसकने लगी , मीठीबात दीजिये ।।
रीति हटी गायन की , सुर के पलायन की ।
ताल बिदकने लगी , दृगपात कीजिये।।
✍🏻कविराज तरुण
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