रचना 02 विषय- कौमी एकता
समस्या का जड़ से , निदान होना चाहिये।
सर्व धर्म सम्भाव , भान होना चाहिये ।।
धरती को माता बोलो , चाहे तो अम्मी कहो ।
पर अपनी माता का , मान होना चाहिये ।।
हाथ इक गीता दूजी , कुरान होना चाहिये ।
छल द्वेष ईर्ष्या का , दान होना चाहिये ।।
बँट बँट गया क्यों , अपना समाज आज ।
एक सुर में देश का , गान होना चाहिये ।।
भावना संस्कृति की , उदार है माना मैंने ।
देशहित का मगर , ज्ञान होना चाहिये ।।
जब कोई आँख लिए , घूरने लगे है माँ को ।
पग में गिरा उसका , प्रान होना चाहिये ।।
भान होना चाहिये ।
मान होना चाहिये ।
गान होना चाहिये ।
प्रान होना चाहिये ।
✍🏻कविराज तरुण
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