विषय-काया
छंद- कुंडलियां
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काया मायामोह है , मन का रूप अपार ।
दीनन की पीड़ा मिटे , ऐसा कर उपकार ।।
ऐसा कर उपकार , कि ये दुनिया याद करे ।
नाम तेरा जीवित , ये मरण के बाद करे ।
कहे तरुण कविराज , यही है जग की माया ।
बाहर से न देखो , भीतर बेहतर काया ।।
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✍🏻कविराज तरुण
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