रचना 02 विषय योग
हास्य
योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।
सुबह सुबह सिंह आसन का ऐसा रूप धरा
जिह्वा - आँख देखकर मेरे प्राण खो गए ।
जल्दी उठाकर मुझे आसन कराने लगी
स्वप्न लोक के दर्शन अब दुर्लभ हो गए ।
जोर जोर हँसती है मुझे हँसने को कहे
लबालब आँसुओं मे मेरे नैन रो गए ।
धनुर् मृग मयूर कपाल भारती अनुलोम विलोम
शवासन करते करते हम फिर से सो गए ।
योग का बुखार चढ़ा जबसे अर्धांगिनी को
कान्हा की जगह घर मे रामदेव हो गए ।
✍🏻कविराज तरुण
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