Monday 27 June 2016

उत्थान

रचना - उत्थान

हो संस्कृति का उत्थान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
देशप्रेम का गान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों निजहित की छंद चौपाई तुझको भाय रही है ।
पुरुषार्थ की पाई पाई तुझे खटाय गई है ।

हो मानवता का संज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
सभ्य आचरण ज्ञान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

क्यों धर्म-द्वेष की खाई तुझको लुभाय रही है ।
सब जीव हैं भाई भाई तुझे भुलाय गई है ।

हो स्नेहमिलन का प्रावधान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻
हर धर्म का हो सम्मान
करूँ मै सादर वंदन 🙏🏻

✍🏻कविराज तरुण

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