रचना 01
तरुण एक यही खेद है
विचारो से लुप्त होता वेद है ।
वेदों ने दिए हमें संस्कार
सिखाया जनमानस का सत्कार
खोल दिए सत्य के द्वार
दिखाया प्रकृति का उपकार
तरुण कलुषित मन के मेघ हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।
वेदों में ज्ञान के कोष अपार
जीवन का अतुलित संसार
कर्म काण्ड का विस्तार
मुक्ति मार्ग भव सागर पार
तरुण बाधित परहित के वेग हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।
✍🏻कविराज तरुण
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