Monday, 20 June 2016

लुप्त होता वेद

रचना 01

तरुण एक यही खेद है
विचारो से लुप्त होता वेद है ।

वेदों ने दिए हमें संस्कार
सिखाया जनमानस का सत्कार
खोल दिए सत्य के द्वार
दिखाया प्रकृति का उपकार

तरुण कलुषित मन के मेघ हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

वेदों में ज्ञान के कोष अपार
जीवन का अतुलित संसार
कर्म काण्ड का विस्तार
मुक्ति मार्ग भव सागर पार

तरुण बाधित परहित के वेग हैं
विचारों से लुप्त होता वेद है ।

✍🏻कविराज तरुण

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