कुंडलियां
गीत विरह के बंद कर , गा खुशियों के गान ।
फूल सोहते शाख पर , मत तोड़ो श्रीमान ।
मत तोड़ो श्रीमान , अर्ज है इतनी मोरी ।
प्रेम डोर रे बाँध , सभी को एकहै डोरी ।
कहै तरुण कविराज , सीख फूलों सँग रह के ।
खुशियों की दो तान , छोड़ के गीत विरह के ।
✍🏻 कविराज तरुण
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