Monday, 2 October 2017

ग़ज़ल 45 रिश्ते निभाऊँगा


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कभी मै सर झुकाउंगा ।
कभी पलकें बिछाऊँगा ।।

हथेली पर सजा रातें ।
फलक पर भी बिठाऊंगा ।।

नही यूँही बना शायर ।
ग़ज़ल तुझपर बनाऊंगा ।।

चली जिस ओर पुरवाई ।
वहाँ तुमको घुमाउंगा ।।

अदब दिल मे मिरे हसरत ।
कई किस्से सुनाऊंगा ।।

तरुण है नाम प्रेमी हूँ ।
सभी रिश्ते निभाऊंगा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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