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कभी मै सर झुकाउंगा ।
कभी पलकें बिछाऊँगा ।।
हथेली पर सजा रातें ।
फलक पर भी बिठाऊंगा ।।
नही यूँही बना शायर ।
ग़ज़ल तुझपर बनाऊंगा ।।
चली जिस ओर पुरवाई ।
वहाँ तुमको घुमाउंगा ।।
अदब दिल मे मिरे हसरत ।
कई किस्से सुनाऊंगा ।।
तरुण है नाम प्रेमी हूँ ।
सभी रिश्ते निभाऊंगा ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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