Sunday, 15 October 2017

ग़ज़ल 55 हम लगे हैं

1222 1222 1222 122

तिरे आगोश में राते बिताने हम लगे हैं ।
हसीं सपने खुली आँखें सजाने हम लगे हैं ।।

ख़बर हो जाये' चंदा को यही सब सोचकर हम ।
दुप्पटे को फलक पर अब उड़ाने हम लगे हैं ।।

कभी आओ जमीने शायरी दहलीज पर तुम ।
बिना सोचे पलक अपनी बिछाने हम लगे हैं ।।

असर बस उम्र का है और कुछ भी है नही ये ।
तेरी बाते सनम खुद से छुपाने हम लगे हैं ।।

पिरोया हर्फ़ में हर हुस्न मोती जोड़कर के ।
तरुण के लफ़्ज़ बनकर बुदबुदाने हम लगे हैं ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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