Monday, 2 October 2017

ग़ज़ल 42 कसम से


1222 1222 122

चलो चल दे बहारों में कसम से ।
हो' अपना घर सितारों में कसम से ।।

नही वो बात आती है अकेले ।
मुहब्बत के दुआरों में कसम से ।।

तपिश हो साँस में औ रूह प्यासी ।
मज़ा है तब शरारों में कसम से ।।

बता कर दिल्लगी की है तो' क्या है ।
समझ लेना इशारों में कसम से ।।

तुम्हे मालूम पड़ जाये हक़ीक़त ।
ज़रा देखो दरारों में कसम से ।।

भँवर के बीच आओ और जानो ।
नही मोती किनारों में कसम से ।।

तरुण तेरी ख़बर मिलती नही कुछ ।
चुना है किन दिवारों में कसम से ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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