Saturday, 14 October 2017

ग़ज़ल 54 - जब तुमसे मिलूँगा

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मै जब तुमसे मिलूँगा ।
लिपटकर रो ही' दूँगा ।।

मुहब्बत बेजुबां है ।
निगाहों से कहूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

हसीं सपना संजोया ।
तिरे दिल में रहूँगा ।।

सफ़र में थाम बाहें ।
सितारों तक चलूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

तू' जादू हुस्न का है ।
हया इसमें भरूँगा ।।

सजाकर मांग तेरी ।
तिरा शौहर बनूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

ख़लिश हो या खता हो ।
तबस्सुम सा दिखूँगा ।।

तरुण की तू खुदाई ।
तिरा सजदा करूँगा ।।

*मै' जब तुमसे मिलूँगा ...*

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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