Tuesday 3 October 2017

ग़ज़ल 51 मै हमेशा

1222 1222 122

रुका था सर झुकाने मै हमेशा ।
कई बातें बताने मै हमेशा ।।

कि तुमने डोर छोड़ी बीच मे ही ।
लगा खुद को मनाने मै हमेशा ।।

उनींदी आँख से सपने हुये गुम ।
चला जब नींद लाने मै हमेशा ।।

तुम्हे समझा मुहब्बत ये खता की ।
न समझा ये कहानी मै हमेशा ।।

जो' रूठे हो तरुण से रूठ जाओ ।
नही आता रिझाने मै हमेशा ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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