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रुका था सर झुकाने मै हमेशा ।
कई बातें बताने मै हमेशा ।।
कि तुमने डोर छोड़ी बीच मे ही ।
लगा खुद को मनाने मै हमेशा ।।
उनींदी आँख से सपने हुये गुम ।
चला जब नींद लाने मै हमेशा ।।
तुम्हे समझा मुहब्बत ये खता की ।
न समझा ये कहानी मै हमेशा ।।
जो' रूठे हो तरुण से रूठ जाओ ।
नही आता रिझाने मै हमेशा ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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