Monday, 2 October 2017

ग़ज़ल 47 फ़साना है

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न समझो तो बहाना है ।
जो' समझो तो फ़साना है ।।

गुले गुलज़ार की चाहत ।
सजोये आबदाना है ।।

खलिश किसको नही मिलती ।
रिवाज़ो में ज़माना है ।।

चलो देखो कुहासे मे ।
अगर इसपार आना है ।।

मुहब्बत बुलबुला जल का ।
इसे तो फूट जाना है ।।

करो कोशिश कभी तुम भी ।
जवानी इक तराना है ।।

नही सुरताल से मतलब ।
अदा से गुनगुनाना है ।।

मिले दुश्वारियां सच है ।
मज़ा फिरभी पुराना है ।।

'तरुण' घायल बहुत ये दिल ।
मगर किस्सा बनाना है ।।

कविराज तरुण सक्षम

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