Tuesday, 10 October 2017

ग़ज़ल 53 आज़मा लो

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कदम आगे बढ़ा लो ।
खुदी को आजमा लो ।।

जो' नफ़रत की अगन है ।
उसे अब तो बुझा लो ।।

है' दिल में बेरुखी क्यों ।
हदें सारी हटा लो ।।

नई भाषा मुहब्बत ।
कभी तो गुनगुना लो ।।

अँधेरा कह रहा है ।
डरो मत मुस्कुरा लो ।।

चरागों को उठाकर ।
शमा कोई जला लो ।।

खलिश ऐसी भी' क्या है ।
कि पलकें ही गिरा लो ।।

चले आओ फ़िज़ा मे ।
हमे हमसे चुरा लो ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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