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कदम आगे बढ़ा लो ।
खुदी को आजमा लो ।।
जो' नफ़रत की अगन है ।
उसे अब तो बुझा लो ।।
है' दिल में बेरुखी क्यों ।
हदें सारी हटा लो ।।
नई भाषा मुहब्बत ।
कभी तो गुनगुना लो ।।
अँधेरा कह रहा है ।
डरो मत मुस्कुरा लो ।।
चरागों को उठाकर ।
शमा कोई जला लो ।।
खलिश ऐसी भी' क्या है ।
कि पलकें ही गिरा लो ।।
चले आओ फ़िज़ा मे ।
हमे हमसे चुरा लो ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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