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किवाड़ों की' उलझन को' हमने जिया है ।।
दरारों को' भीतर से' हमने सिया है ।
फ़कीरी उदासी परेशानियां थी ।
रदीफ़े बहर ग़म मे' ये काफ़िया है ।।
मिला बंदिगी में खुदा का सहारा ।
तभी नाम जीवन ये' उसके किया है ।।
रहम की गुज़ारिश करे भी तो' कैसे ।
ज़हर अपने हाथों से' हमने पिया है ।।
रवाँ हुस्न तेरा फलक का सितारा ।
'तरुण' जल न पाया जो' बुझता दिया है ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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